Wednesday 29 July 2015

अपूर्वा : मुर्राह भैंस की क्लोन कटड़ी

अपूर्वा : मुर्राह भैंस की क्लोन कटड़ी

किसी भी जीव का प्रतिरूप बनाना ही क्लोनिंग कहलाता है। क्लोन एक ऐसी जैविक रचना है, जो मात्र जनक (माता या पिता) से गैर-लैंगिक विधि द्वारा उत्पादित होती है। क्लोन शारीरिक एवं आनुवांशिक रूप से अपने जनक के पूर्णतः समरूप होता है। क्लोनिंग को लेकर भारत में शोधकर्ताओं का उद्देश्य पूरी तरह स्पष्ट है। वैज्ञानिकों का मानना है कि मवेशियों की क्लोनिंग से उच्च कोटि की नस्लें उत्पन्न की जा सकेंगी और वह भी बिना किसी आनुवांशिक गुण की हानि के। इस क्लोनिंग का सबसे बड़ा फायदा डेयरी क्षेत्र को होगा और लंबे समय तक दूध देने वाली अच्छी नस्ल की भैंसों की संख्या में वृद्धि हो सकेगी। उल्लेखनीय है कि विश्व भर में भारत में भैंसों की संख्या सबसे अधिक है जो देश के कुल दूध उत्पादन में 55 प्रतिशत का सहयोग कर रही हैं लेकिन अच्छी नस्ल की भैंसों की संख्या सीमित है और इसे तुरंत तेजी से बढ़ाए जाने की आवश्यकता है।

  • 5 फरवरी, 2015 को करनाल स्थित 'राष्ट्रीय डेरी अनुसंधान संस्थान' (NDRI) के वैज्ञानिकों ने क्लोनिंग के जरिए एक 'कटड़ी' (Female Calf) का जन्म कराने में सफलता प्राप्त की है।
  • 'हस्त-निर्देशित क्लोनिंग तकनीक' (Hand-guided Cloning Technique) के माध्यम से उत्पन्न इस क्लोन कटड़ी का नाम 'अपूर्वा' (APURVA) रखा गया है।
  • इस कटड़ी का जन्म सामान्य प्रसव से हुआ और जन्म के समय इसका वजन लगभग 37 किग्रा. था।
  • यह नवजात कटड़ी एनडीआरआई के पशुधन फार्म की मुर्राह नस्ल की भैंस (MU-5345) की क्लोन है।
  • उल्लेखनीय है कि एनडीआरआई के वैज्ञानिकों ने जिस भैंस के कान से कोशिकाएं लेकर 2 मई, 2014 को 'लालिमा' नामक क्लोन कटड़ी का जन्म कराया था, उसी भैंस के मूत्र (Urine) से 'दैहिक कोशिकाओं' (Somatic Cells) को अलग कर अपूर्वा को विकसित किया है।
  • यह विश्व में मूत्र से ली गई दैहिक कोशिकाओं के माध्यम से क्लोन कटड़ी के विकास का पहला मामला है।
  • उल्लेखनीय है कि जिस भैंस से कोशिकाओं को पृथक कर अपूर्वा नामक क्लोन विकसित किया गया है, उसने अपने तीसरे 'दुग्ध-काल' (Lactation Period) के दौरान 305 दिन के सामान्य काल में 2713 किग्रा. तथा 471 दिन के कुल स्तनपान काल में 3494 किग्रा. कुल दूध का उत्पादन किया था।

हस्त निर्देशित क्लोनिंग तकनीक

राष्ट्रीय डेरी अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिकों द्वारा विकसित हस्त निर्देशित क्लोनिंग तकनीक पारंपरिक क्लोनिंग तकनीक का उन्नत रूप है। इस तकनीक में अंडाशय से अपरिपक्व अंडे लेकर प्रयोगशाला में उन्हें परिपक्व किया जाता है। तत्पश्चात उनकी ऊपरी परत उतार कर उन्हें एंजाइम से उपचारित किया जाता है ताकि बाहरी परत 'जोना पेलुसिडा' (Zona pellucida) घुल जाए। फिर इन्हें रसायनों से उपचारित किया जाता है ताकि आनुवांशिक सामग्री एक जगह इकट्ठी हो सके। इस हिस्से को फिर हस्त द्वारा धारदार ब्लेड से काटकर मूल आनुवांशिक सामग्री को अलग किया जाता है। इन अंडों को भ्रूणीय स्टेम कोशिकाओं में से एकल कोशिका लेकर इलेक्ट्रोफ्यूज करके प्राप्त भ्रूणों का संवर्धन एवं विकास प्रयोगशाला में 6 से 7 दिनों तक किया जाता है ताकि ये 'ब्लास्टोसिस्ट की अवस्था' (Blastocyst Stage) तक आ सकें। इन ब्लास्टोसिस्ट का प्राप्तकर्ता भैंसों में स्थानांतरण करके ही क्लोन का जन्म कराया जाता है।

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